महाराष्ट्र: एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेंद्र बने डिप्टी सीएम

महाराष्ट्र की राजनीति में सत्ता परिवर्तन के ड्रामे ने सभी के होश उड़ा दिए हैं। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के बगावती तेवर ने महाराष्ट्र की राजनीति के नए अध्याय की शुरुआत की। करीब 10 दिनों तक चली इस सियासत के हर दिन नए एपिसोड दिख रहे थे। मगर नाटक के क्लाइमेक्स ने पूरी कहानी ही पलट के रख दी।

‘महाराष्ट्र फाइल्स’ नामक इस नाटक का आखिरी एपिसोड तो आपको याद ही होगा। जिसने सबके होश उड़ा दिए थे। सीन था जब पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस और बागी शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे का राजभवन पहुँचकर मीडिया से सामना हुआ। और मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार समझे जाने वाले पूर्व सीएम फडनवीस महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे की ताजपोशी का समय बता रहे थे। लेकिन अचानक हुआ ये उलटफेर तमाम राजनीतिक पंडितों की सोच से भी काफी ऊपर है।

खुद फडणवीस ने कहा कि गुरुवार शाम 7.30 बजे एकनाथ शिंदे अकेले शपथ ग्रहण करेंगे और BJP ने हिंदुत्व के लिए उनका समर्थन किया है। लेकिन पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस इस सरकार का हिस्सा नहीं होंगे। जाहिर है महाराष्ट्र में सीएम कुर्सी को लेकर सभी बातें हवा हवाई थी। असल मायने में शिवसेना की सरकार गिराने में अगर किसी का सबसे बड़ा हाथ अगर किसी का होगा तो वह फडनवीस ही होंगे। क्योकि शिवसेना ने अपनी विचारधारा से बिल्कुल अलग NCP और Congress दलों के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। जिसका बदला भाजपा सरकार फडनवीस को सीएम कुर्सी पर बैठाकर ले सकती है।

भाजपा की गुप्त सूत्र भी यही संकेत दे रहे थे और बुधवार शाम मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद देवेन्द्र फडनवीस की सरकार में वापसी तय मानी जा रही थी। लेकिन एकनाथ शिंदे ने सीएम की कुर्सी हासिल करने की बगावत ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय ल लिख दिया है। कहा जाता है कि एक जमाने में ऐसा ही खेल ,खेल कर कुर्सी पर क़ाबिज़ होने वाले मराठा राजनीति के सबसे बड़े क्षत्रप शरद पवार, शिंदे की छलांग का बखूबी आकलन कर पा रहे होंगे।

बहरहाल, मुख्यमंत्री की कुर्सी के बेहद करीब पहुंचकर भी केंद्र सरकार के “थोड़ा और इंतजार” वाले रिएक्शन पर देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि महाराष्ट्र की जनता ने महाविकास अघाड़ी को मेन्डेट नहीं दिया था। लेकिन शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब ठाकरे के विचारों को ताक पर रख दिया और NCP-Congress के साथ मिलकर सत्ता हासिल कर ली।

मगर देवेन्द्र के दर्द-ए-दिल का हाल केंद्र सरकार क्या जाने! वैसे भी खुद को तसल्ली देने के लिए ये सोच लेना भी बुरा नहीं, कि चुनाव में अब बहुत लंबा वक्त भी नहीं बचा है।

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