भारत ने दुश्मन के गले में डाली लंबी रस्सी” — अमरुल्लाह सालेह का तीखा वार, पाक पर मंडराए ‘युद्ध’ के बादल

PHOTO- JAGRAN

 

 

 

TMP :  पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी चरम पर है। भारत की कड़ी प्रतिक्रिया से पाकिस्तान की सियासत में घबराहट है और वहां के नेता युद्ध की आशंका जता रहे हैं। इस बीच अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह का बयान सामने आया है, जिसने भारत के रुख की सराहना करते हुए पाकिस्तान पर जोरदार हमला बोला है।

एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए सालेह ने लिखा— “भारत ने अपने दुश्मन के खिलाफ इलेक्ट्रिक चेयर का इस्तेमाल करने की बजाय उसके गले में एक लंबी रस्सी डाल दी है।” उनके इस बयान का मतलब साफ है कि भारत पाकिस्तान को तात्कालिक सजा देने के बजाय उसे धीरे-धीरे घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है। यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और भारत में इसे रणनीतिक दृढ़ता की सराहना के तौर पर देखा जा रहा है।

यह पहली बार नहीं है जब अमरुल्लाह सालेह ने पाकिस्तान पर निशाना साधा हो। पहलगाम हमले के बाद भी उन्होंने वैश्विक नेताओं की प्रतिक्रियाओं पर सवाल उठाते हुए कहा था— “आतंकवाद के खिलाफ खोखली संवेदनाएं दिखावा हैं। असली लड़ाई में ये लोग हाथ पीछे खींच लेंगे या अपने फायदे के लिए आतंक को ही हवा देंगे।”

https://x.com/AmrullahSaleh2/status/1916563936826265969

हाल ही में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे अमेरिका से मिले फंड का उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने में स्वीकार करते दिखे। इस पर कटाक्ष करते हुए अमरुल्लाह ने पूछा— “क्या आपने यह आतंकवाद का कॉन्ट्रैक्ट किसी नए ग्राहक के साथ साइन किया है, या फिर पुराने से ही रीन्यू करवाया है?”

https://x.com/AmrullahSaleh2/status/1916167375470158104

कौन हैं अमरुल्लाह सालेह?

अमरुल्लाह सालेह अफगानिस्तान के पंजशीर प्रांत से हैं। बेहद कम उम्र में वह अपने परिवार से अलग हो गए थे और ‘लायन ऑफ पंजशीर’ अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में एंटी-तालिबान आंदोलन का हिस्सा बन गए। 1996 में तालिबान ने उनकी बहन की हत्या कर दी थी, जिसके बाद से वे कट्टर तालिबान विरोधी माने जाते हैं। तख्तापलट से पहले वह अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति भी रह चुके हैं।

भारत-पाक संबंधों के इस तनावपूर्ण दौर में अमरुल्लाह सालेह की टिप्पणियां सिर्फ कूटनीतिक बयान नहीं हैं, बल्कि आतंक के खिलाफ भारत के रुख को वैश्विक समर्थन की झलक भी देती हैं।

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