पूजा स्थल अधिनियम पर SC के निर्देश: अब नए मुकदमों पर रोक, केंद्र से चार हफ्ते में जवाब तलब

 

 

 

नई दिल्ली। पूजा स्थल अधिनियम, 1991 (Places of Worship Act) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की विशेष पीठ ने मामले में अहम निर्देश जारी किए। कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक इन याचिकाओं का निपटारा नहीं होता, तब तक मंदिर-मस्जिद जैसे विवादों से जुड़े नए मुकदमे दर्ज नहीं किए जा सकते।

अदालतों को सर्वे और अंतिम आदेश पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को भी इस मामले में कोई प्रभावी या अंतिम आदेश जारी करने से रोका है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी अदालत को विवादित स्थलों पर सर्वे का आदेश देने का अधिकार नहीं होगा। इसके साथ ही केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह चार हफ्तों के भीतर हलफनामा दाखिल कर इस मामले पर अपना पक्ष स्पष्ट करे।

मथुरा और अन्य मामलों का जिक्र

सुनवाई के दौरान अदालत ने मथुरा और कुछ अन्य विवादों का जिक्र किया। जस्टिस के वी विश्वनाथन ने कहा कि यदि कोई मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है, तो सिविल कोर्ट उस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि सभी पक्षों की प्रतिक्रियाओं और अदालत के निर्देशों को साझा करने के लिए एक केंद्रीकृत पोर्टल बनाया जाए।

वकीलों के तर्क और सरकार का विरोध

याचिकाकर्ताओं के वकील राजू रामचंद्रन ने अदालत को बताया कि विभिन्न अदालतों में पूजा स्थल अधिनियम से जुड़े दस मुकदमे लंबित हैं। उन्होंने आग्रह किया कि इन पर रोक लगाई जाए। केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस तरह की रोक गैर-जरूरी है।

पूजा स्थल अधिनियम क्या है?

पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के अनुसार, 15 अगस्त 1947 की स्थिति में किसी भी पूजा स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता। यह अधिनियम धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाए रखने के उद्देश्य से लाया गया था।

अगली सुनवाई तक नई उम्मीदें

इस मामले की अगली सुनवाई तक कोई नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा और अदालतें किसी भी प्रभावी आदेश से बचेंगी। कोर्ट के इस रुख को मंदिर-मस्जिद विवादों में भड़काऊ राजनीति पर अंकुश लगाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

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