केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए तर्कों का विरोध किया। केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि अभिव्यक्ति के लिए जरूरी जानने का अधिकार कुछ उद्देश्यों के लिए हो सकता है। जवाब में ये भी कहा गया कि लोकतंत्र के सामान्य स्वास्थ्य के लिए जानने का अधिकार अधिक व्यापक होगा।
केंद्र के इलेक्ट्रॉल बॉन्ड स्कीम को चुनौती
बता दें कि 16 अक्टूबर को इलेक्ट्रॉल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की बेंच को रेफर किया था। अदालत ने याचिका की महत्ता को देखते हुए फैसले के लिए संविधान पीठ के पास भेज दिया था। 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की बेंच याचिका पर सुनवाई करेगी।
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याचिकाकर्ताओं ने मामले को पांच जजों की पीठ के पास भेजने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि यह मामला संवैधानिक महत्व का है और यह देश में लोकतांत्रिक राजनीति और राजनीतिक दलों की फंडिंग को प्रभावित कर सकता है।
क्या है इलेक्ट्रॉल बॉन्ड स्कीम?
इलेक्ट्रॉल बॉन्ड स्कीम के तहत एक बॉन्ड खरीदकर किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दिया जा सकता है। बॉन्ड को कोई भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म के द्वारा खरीदा जा सकतका है। हालांकि, वह शख्स भारतीय नागरिक हो या कंपनी भारत में हो। इसका मकसद राजनीतिक दलों को चंदा देना है।