सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: “ट्रायल कोर्ट में पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए जजों की भारी कमी”

 

 

पीटीआई:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाल यौन अपराधों से जुड़े मामलों की धीमी सुनवाई पर गंभीर चिंता जताई। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि देश के ट्रायल कोर्ट में पॉक्सो (POCSO) कानून के तहत मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त जज नहीं हैं। यह स्थिति अदालत के उस निर्देश को प्रभावित कर रही है, जिसमें हर जिले में एक विशेष कोर्ट स्थापित करने की बात कही गई थी।

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे अहम निर्देश

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ 2019 में स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए उस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसका शीर्षक था— “बाल दुष्कर्म की घटनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी”। सुप्रीम कोर्ट ने तब निर्देश दिया था कि जिन जिलों में पॉक्सो के तहत 100 से अधिक एफआईआर दर्ज हैं, वहां केंद्र सरकार के वित्तीय सहयोग से विशेष अदालतें बनाई जाएं।

अब तक नहीं पूरे हुए निर्देश, जजों की भारी कमी

मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने खुलासा किया कि ट्रायल कोर्ट में जजों की भारी कमी के कारण कई निर्देश अभी भी अधूरे हैं। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा—

“हमारे जिला न्यायालयों में पर्याप्त जज ही नहीं हैं। वर्षों से पद रिक्त पड़े हुए हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है।”

फोरेंसिक रिपोर्ट में देरी बनी बड़ी बाधा

सुनवाई के दौरान पीठ ने एक रिपोर्ट पर भी गौर किया, जिसमें पॉक्सो मामलों में देरी के लिए फोरेंसिक लैब की धीमी कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहराया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, समय पर रिपोर्ट न मिलने के कारण मुकदमों की सुनवाई लंबित रह जाती है।

बाल यौन अपराधों के चौंकाने वाले आंकड़े

रिपोर्ट के अनुसार, 1 जनवरी से 30 जून 2019 के बीच देशभर में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के 24,212 मामले दर्ज किए गए। इनमें से—

  • 11,981 मामलों की जांच अभी भी पुलिस कर रही है।
  • 12,231 मामलों में चार्जशीट दाखिल कर दी गई है।

25 मार्च को हो सकता है अंतिम निर्णय

पीठ ने यह भी संकेत दिया कि 2019 में दिए गए कुछ निर्देशों का पालन किया गया है और अब 25 मार्च को इस मामले का अंतिम निपटारा संभव है

क्या सरकार उठाएगी ठोस कदम?

सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी के बाद अब सवाल उठता है कि सरकार जजों की कमी को पूरा करने और फोरेंसिक जांच को तेज करने के लिए ठोस कदम कब उठाएगी? क्या पीड़ित बच्चों को जल्द न्याय मिल पाएगा? इस पर 25 मार्च की सुनवाई अहम साबित हो सकती है।

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