देहरादून : कभी उत्तराखंड के सीढ़ीदार खेतों में परंपरागत रूप से उगाया जाने वाला मंडुआ उपेक्षा का शिकार था, लेकिन अब यह किसानों की आमदनी का मजबूत स्रोत बनता जा रहा है। राज्य और केंद्र सरकार की मिलेट्स फसलों को बढ़ावा देने की योजनाओं के कारण मंडुआ की खेती को नया जीवन मिला है।
सरकार के प्रयासों से बदली तस्वीर
इस साल उत्तराखंड सरकार ने 3100 मीट्रिक टन से अधिक मंडुआ किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदा है। किसानों को इसके लिए ₹4200 प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य दिया गया, जो 2021-22 के ₹2500 प्रति क्विंटल से 68% अधिक है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने 2022 में मंडुआ को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में शामिल किया। इसके बाद मंडुआ को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS), मिड-डे मील, और आंगनवाड़ी पोषण कार्यक्रमों में शामिल किया गया।
मंडुआ की खेती को मिल रहा प्रोत्साहन
सरकार ने मंडुआ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए:
- 80% तक बीज और खाद पर सब्सिडी प्रदान की।
- किसानों से खरीद के लिए 270 संग्रह केंद्र स्थापित किए, जो 2020-21 में सिर्फ 23 थे।
- इन केंद्रों के माध्यम से 72 घंटे के भीतर भुगतान सुनिश्चित किया।
- किसानों और सहकारी समितियों को प्रोत्साहन राशि भी दी।
सफलता की कहानी: बढ़ती मांग और बढ़ता उत्पादन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिलेट्स को बढ़ावा देने के आह्वान के बाद मंडुआ की मांग तेजी से बढ़ी है। राज्य सरकार ने “स्टेट मिलेट मिशन” शुरू कर न केवल मंडुआ का उत्पादन बढ़ाया, बल्कि इसे बाजार तक पहुंचाने के लिए ओपन मार्केट और हाउस ऑफ हिमालय जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग किया।
इस साल किसानों से खरीदा गया 3100.17 मीट्रिक टन मंडुआ दर्शाता है कि यह पहल किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है।
पौष्टिकता और भविष्य
मंडुआ न केवल पोषण से भरपूर है, बल्कि यह जैविक और टिकाऊ खेती का एक आदर्श उदाहरण है। अब इसे राज्य सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने के साथ-साथ मिलेट्स फसलों के प्रति उपभोक्ताओं की जागरूकता भी बढ़ रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का संदेश
मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “उत्तराखंड के पारंपरिक अन्न मंडुआ को प्रोत्साहन देना हमारी प्राथमिकता है। यह सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया नहीं है, बल्कि पोषण और स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।”
नया युग: मंडुआ बना ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़
सरकार के ठोस प्रयासों से मंडुआ न केवल उत्तराखंड के खेतों में हरियाली ला रहा है, बल्कि किसानों की आय में भी बड़ा योगदान दे रहा है। यह पहल न केवल आर्थिक, बल्कि पोषण और कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन रही है।