नई दिल्ली : पश्चिम एशिया में एक बार फिर तनाव अपने चरम पर है। शुक्रवार सुबह इजरायल ने ईरान की परमाणु सुविधाओं पर बड़ा हमला किया, जिसमें ईरान के कई शीर्ष सैन्य कमांडरों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। यह हमला न सिर्फ सैन्य दृष्टि से अहम है, बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन को भी गहराई से प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है।
ईरान और इजरायल: दोस्ती से दुश्मनी तक का सफर
कभी गुप्त सहयोगी रहे ईरान और इजरायल आज जानी दुश्मन बन चुके हैं। 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने अमेरिका और इजरायल को ‘मुख्य शत्रु’ घोषित कर दिया। इससे पहले, शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासनकाल में दोनों देशों के संबंध गुप्त रूप से मजबूत थे। लेकिन क्रांति के बाद बदला राजनीतिक चरित्र ही इस दुश्मनी की नींव बना।
परमाणु हथियार बना टकराव की सबसे बड़ी वजह
पिछले दो दशकों से इजरायल का आरोप है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु बम बनाने की दिशा में काम कर रहा है। हालांकि ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था IAEA ने भी हाल में चेतावनी दी कि ईरान के पास हथियार-स्तर के यूरेनियम की मात्रा तेजी से बढ़ रही है।
‘प्रतिरोध की धुरी’ में सेंध
ईरान ने वर्षों से हमास, हिजबुल्लाह और हाउती जैसे प्रॉक्सी संगठनों के ज़रिए पूरे क्षेत्र में ‘प्रतिरोध की धुरी’ खड़ी की थी। लेकिन 7 अक्टूबर 2023 के बाद छिड़े युद्ध में इस धुरी की रीढ़ टूटती दिख रही है। हमास और हिजबुल्लाह के खिलाफ इजरायल के सैन्य अभियानों ने इन संगठनों को कमजोर कर दिया है।
इजरायल ने क्यों चुना हमला करने का यही समय?
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ईरान पर हमला करना अब आवश्यक हो गया था। उनका दावा है कि ईरान ने हाल ही में परमाणु बम बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी थी और समय हाथ से निकल रहा था। अमेरिका और ईरान के बीच चल रही परमाणु वार्ता भी विफल रही, जिससे इजरायल को हमला करने का ‘राजनीतिक अवसर’ मिला।
IAEA की निंदा और ईरान की प्रतिक्रिया
IAEA के बोर्ड ने 20 वर्षों में पहली बार ईरान की निंदा करते हुए कहा कि वह निरीक्षकों के साथ सहयोग नहीं कर रहा है। इसके जवाब में ईरान ने तीसरा संवर्धन स्थल स्थापित करने और अधिक शक्तिशाली सेंट्रीफ्यूज लगाने की घोषणा की। इसके बाद इजरायल ने तुरंत कार्रवाई का निर्णय लिया।
क्या अमेरिका भी है इस हमले के पीछे?
हालांकि अमेरिका ने औपचारिक रूप से कोई सैन्य समर्थन स्वीकार नहीं किया है, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों और अमेरिकी नीतियों से संकेत मिलते हैं कि इजरायल को परोक्ष रूप से समर्थन प्राप्त है।
इजरायल और ईरान के बीच यह टकराव अब केवल शब्दों या प्रॉक्सी युद्धों तक सीमित नहीं रहा। यह खुला सैन्य संघर्ष बनता जा रहा है, जिसकी आंच पूरे मध्य पूर्व को अपनी चपेट में ले सकती है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि ईरान की प्रतिक्रिया क्या होगी और क्या यह संघर्ष एक नए युद्ध का रूप ले लेगा।