एएनआई: भारतीय वायुसेना अपनी युद्धक क्षमता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए 114 मध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमानों की खरीद की तैयारी कर रही है। अगले चार से पांच वर्षों में इन विमानों को वैश्विक टेंडर के जरिए बेड़े में शामिल किया जाएगा। इस टेंडर के लिए बोइंग, लॉकहीड मार्टिन, दासौ एविएशन, और साब जैसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां दावेदारी पेश कर सकती हैं।
कौन-कौन से विमान दौड़ में?
प्रतिस्पर्धा में राफेल, ग्रिपेन, यूरोफाइटर टाइफून, मिग-31 और अमेरिकी एफ-16, एफ-15 जैसे घातक लड़ाकू विमान शामिल हैं। इनमें एफ-15 स्ट्राइक ईगल पहली बार इस टेंडर प्रक्रिया का हिस्सा बनेगा। अन्य विमानों का पिछली बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान निविदा में मूल्यांकन हो चुका है।
वायुसेना की दीर्घकालिक योजना
रक्षा सूत्रों के अनुसार, वायुसेना अगले 10 वर्षों में अपने स्क्वाड्रन की ताकत बनाए रखने के लिए इन 114 विमानों को शामिल करना चाहती है। इसके अलावा, एलसीए मार्क 1 ए और मार्क-2 जैसे हल्के लड़ाकू विमान भी बेड़े में जोड़े जाएंगे।
रक्षा मंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट
रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को रिपोर्ट सौंपते हुए इन विमानों की खरीद को रणनीतिक रूप से अनिवार्य बताया। सूत्रों के अनुसार, वायुसेना 2037 तक 10 लड़ाकू स्क्वाड्रनों को रिटायर करने की योजना बना रही है और 2047 तक 60 स्क्वाड्रनों की क्षमता हासिल करना चाहती है।
पुराने फाइटर जेट्स की विदाई
अगले 10-12 वर्षों में वायुसेना के बेड़े से जगुआर, मिराज-2000 और मिग-29 को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा। मिग श्रृंखला के पुराने विमानों की रिटायरमेंट और स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमानों की धीमी आपूर्ति के कारण वायुसेना में लड़ाकू विमानों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है।
क्या बदलेगा इस नए सौदे से?
इस नए अधिग्रहण से भारत की हवाई सुरक्षा को जबरदस्त मजबूती मिलेगी और देश की दो-मोर्चे पर युद्ध लड़ने की क्षमता में इजाफा होगा। वायुसेना फिलहाल केवल 36 राफेल लड़ाकू विमानों को शामिल कर पाई है, जो अत्याधुनिक 4.5 पीढ़ी के विमान माने जाते हैं।
आगे क्या?
अब सबकी नजर इस बहुप्रतीक्षित वैश्विक टेंडर पर है, जिससे यह तय होगा कि भारत की वायुसेना किस तकनीक और रणनीति के साथ अपने बेड़े को नया रूप देगी।