देहरादून: भारत के कपड़ा क्षेत्र को हरित और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून का दौरा किया। 20 और 21 अप्रैल को आयोजित इस दो दिवसीय दौरे के दौरान उन्होंने एफआरआई के वैज्ञानिकों से बांस पर आधारित कपड़ा तकनीक और अनुसंधान की विस्तृत जानकारी ली।
बांस: हरित क्रांति की नई डोरी
वन अनुसंधान संस्थान की निदेशक डॉ. रेनू सिंह ने बैठक में बांस पर किए जा रहे शोध और उसके कपड़ा उद्योग में संभावित उपयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बांस से घुलनशील ग्रेड पल्प (Dissolving Grade Pulp – DGP) बनाकर रेयान और विस्कोस जैसे फाइबर तैयार किए जा सकते हैं, जो पारंपरिक लकड़ी आधारित फाइबर का एक सस्टेनेबल विकल्प है।
एफआरआई वैज्ञानिकों ने बताया कि उनके परीक्षण में भारतीय बांस की दो प्रजातियों को उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला पाया गया, जिनमें 52% से अधिक अल्फा-सेल्यूलोज, कम राख और सिलिका, और बेहतरीन लुगदी गुण हैं।
गिरिराज सिंह ने बताया “बांस से बनेगा हरित भारत का सपना”
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा, “बांस की तीव्र वृद्धि और संवहनीय गुण इसे भारत की कपड़ा आत्मनिर्भरता का स्तंभ बना सकते हैं। यह सिर्फ टेक्सटाइल नहीं, रोजगार, संवहनीयता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में हमारी छलांग है।”
संयुक्त सहयोग और ग्रामीण आजीविका का सशक्त मंच
डॉ. रेनू सिंह ने इसे साझा विजन का प्रतीक बताते हुए कहा, “यह शोध ग्रामीण जीवन में बदलाव और उच्च मूल्य वाले उद्योगों में बांस को स्थापित करने की दिशा में बड़ी पहल है।”
उद्योग, अनुसंधान और सरकार एक मंच पर
इस अवसर पर हुई बैठक में कई प्रमुख वैज्ञानिक और अधिकारी शामिल रहे —
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कचन देवी, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद
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डॉ. ए.के. शर्मा, निदेशक, भारतीय जूट उद्योग अनुसंधान संघ (IJIRA), कोलकाता
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रेशम तकनीकी सेवा केंद्र, प्रेमनगर के वैज्ञानिक
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वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प सेवा केंद्र के सहायक निदेशक
भविष्य की योजना: उत्पादन से फैशन तक
बैठक में उत्पादन क्षमता को बढ़ाने, प्रक्रियाओं को परिष्कृत करने और कपड़ा निर्माताओं के साथ साझेदारी के भविष्य के रोडमैप पर चर्चा हुई। बैठक का समापन इस संकल्प के साथ हुआ कि बांस को सिर्फ कच्चे माल तक सीमित न रखकर, फैशन और वैश्विक ब्रांडिंग का हिस्सा बनाया जाएगा।