UP BJP में नई सियासी बिसात: दलित अध्यक्ष या फिर ओबीसी हैट्रिक? 2027 की तैयारी में जातीय संतुलन साधने की कोशिश

 

 

 

TMP:  उत्तर प्रदेश की सत्ता में मजबूती से जमी भारतीय जनता पार्टी अब 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन द्वारा पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक मतों में सेंधमारी के बाद बीजेपी ने संगठन और सरकार दोनों स्तरों पर जातीय संतुलन साधने की रणनीति तेज कर दी है।

सूत्रों की मानें तो भाजपा का फोकस अब दलित कार्ड पर है। उत्तर प्रदेश में अब तक भाजपा के 14 प्रदेश अध्यक्षों में 9 सवर्ण और 5 ओबीसी रहे हैं, लेकिन किसी भी दलित नेता को अब तक यह ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी गई। अब जबकि बसपा का जनाधार कमज़ोर पड़ा है और मायावती की जाटव बिरादरी में भी भाजपा को अवसर दिख रहा है, तो दलित अध्यक्ष की संभावना पर गंभीर मंथन जारी है।

हालांकि ओबीसी चेहरों की उपलब्धता और कार्यक्षमता देखते हुए यह भी मुमकिन है कि भाजपा लगातार तीसरी बार किसी ओबीसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है। पिछली बार भूपेंद्र चौधरी और उससे पहले स्वतंत्र देव सिंह इस पद पर रह चुके हैं।

योगी सरकार के 56 सदस्यीय मंत्रीमंडल में भी जातीय संतुलन का विशेष ध्यान रखा गया है। नौ मंत्री दलित समुदाय से हैं, जिनमें चार जाटव बिरादरी से आते हैं। वहीं, ओबीसी और सवर्णों की हिस्सेदारी लगभग बराबर है।

भाजपा रणनीतिकार मानते हैं कि जिस वर्ग को संगठन में प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, उसे सरकार में बड़े पदों के माध्यम से साधा जाएगा। सूत्रों के अनुसार, अभी भी चार नए मंत्रियों की नियुक्ति संभव है, जिससे जातीय समीकरणों को और सुदृढ़ किया जा सके।

दूसरी ओर, विपक्ष लगातार जातिगत जनगणना, संविधान और बाबा साहेब आंबेडकर के सम्मान जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर भाजपा को घेरने का प्रयास कर रहा है। खासकर, 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने मिलकर ओबीसी और अल्पसंख्यकों को जोड़कर बीजेपी को चुनौती दी थी।

-क्या दलितों के मोहभंग का लाभ भाजपा उठा पाएगी?

-क्या एक दलित प्रदेश अध्यक्ष 2027 की राह आसान बना सकेगा या ओबीसी चेहरों की हैट्रिक होगी?

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