आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीडि़ता को ट्रायल कोर्ट में गवाही देने के लिए बार-बार नहीं बुलाया जाना चाहिए।वजस्टिस सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यौन अपराध के दर्दनाक अनुभव से पीडि़त बच्चे को एक ही घटना के बारे में गवाही देने के लिए बार-बार नहीं बुलाया जाना चाहिए।
नाबालिग लड़की से कर ली थी शादी
अदालत उड़ीसा हाई कोर्ट और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत नयागढ़ के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-सह-विशेष न्यायालय के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने एक नाबालिग पीडि़ता को गवाह के रूप में फिर से बुलाने से इनकार कर दिया था। इस मामले में आरोपित ने नाबालिग लड़की का अपहरण करके उससे मंदिर में शादी कर ली थी और उसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया था। बाद में पीडि़ता को उसके माता-पिता ने पुलिस की मदद से बचाया था।
आरोपितों पर 2020 में आइसीपी, पोक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान विशेष अदालत ने आरोपित द्वारा पीडि़ता को गवाह के रूप में दोबारा बुलाने के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने पोक्सो अधिनियम की धारा-33(5) पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया है कि बच्चे को गवाही के लिए अदालत में नहीं बुलाया जाएगा।
बच्चे को अदालत के समक्ष गवाही देने के लिए बार-बार न बुलाया जाए
निर्णय को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”पोक्सो अधिनियम एक विशेष कानून है, जिसे बच्चों को यौन अपराधों से बचाने व उनके हितों की रक्षा करने तथा अधिनियम के तहत अपराधों के मुकदमे के प्रत्येक चरण में बच्चे की भलाई सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। अधिनियम की धारा-33(5) में विशेष अदालत पर यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि बच्चे को अदालत के समक्ष गवाही देने के लिए बार-बार न बुलाया जाए।”