केदार सहित सभी तीर्थों पर सरकारी व्यवस्था और जन सैलाब किसी अनहोनी के इंतजार मे
डॉ० अलका बड़थ्वाल पंत
उत्तराखंड मे चारधाम यात्रा शुरू हो गई है, और आखिरकार कोरोना त्रासदी के बाद इस वर्ष सभी तीर्थों पर जाया जा सकता है। पिछले दो वर्षों की भरपाई के लिए सरकार ने भी प्रचार प्रसार मे कोई कसर नहीं छोड़ी है। जिसका असर सोशल मीडिया पर वाइरल होती तस्वीरों मे दिख रहा है । परंतु मंदिर मार्गों पर श्रद्धालुओं की बेतरतीब बढ़ती संख्या सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था पर कई प्रश्न खड़े कर रही है।
सरकार ने चारधाम यात्रा के लिए देश विदेश के लोगों को आमंत्रित किया है, फिर भी बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष श्री अजेंद्र ‘अजय’ के निवेदन पर तीर्थों मे व्यवस्थाओं के आधार पर सरकार ने प्रतिदिन दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या निर्धारित की थी । जिसमे यात्रा के लिए आने वाले सभी यात्रियों का पंजीकरण आवश्यक है। अब तक यात्रा के लिए कुल 9.5 लाख पंजीकरण हो चुके हैं। और इसमे भी सबसे ज्यादा 3.35 लाख पंजीकरण अकेले केदारनाथ के लिए हुए हैं।
केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद से जिस तरह की तस्वीरें और विडियो सोशल मीडिया पर आ रहे हैं, वो किसी त्रासदी से कम नहीं है। केदारनाथ मे सरकार द्वारा प्रतिदिन दर्शनार्थी संख्या 12000 तय की थी, परंतु वीडियो देखने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गौरीकुण्ड से केदारनाथ जाने वाले रास्ते पर पैर रखने तक की जगह नहीं है। पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील इस क्षेत्र मे इस तरह का जन सैलाब किसी अप्रत्याशित अनहोनी कि आशंका पैदा करता है। जिस तरह की ये भीड़ है उसमे किसी एक की भी छोटी सी गलती से सैकड़ों जाने जोखिम मे पड जायेंगी।
प्रशासन की बात करें तो ऐसा लगता है कि कपाट खुलने कि घोषणा के बाद सरकार और प्रशासन का काम जैसे खत्म हो गया है। हाल फिलहाल सरकार मुख्यमंत्री के उपचुनाव मे बिजी है।
स्वास्थ्य जांच व्यवस्था को भी जांच की जरूरत
सरकार ने स्वास्थ्य जांच के बाद ही तीर्थयात्रियों को आगे जाने देने की बात कि थी, और सूचनाओं के हिसाब से देखें तो व्यवस्थाएं की भी हैं।परंतु इस बात पर शायद ही किसी का ध्यान है की कितने लोग एक दिन मे जा रहे है। अगर ऐसा होता तो संभवतः जो तस्वीरें वाइरल हो रही हैं वो कुछ अलग होती। फ़ेक्ट्स की बात करें तो केदारनाथ मे केवल 10000 यात्रियों के रुकने की व्यवस्था है। परंतु कपाट खुलने के दिन यानि 7 मई को ही यहाँ 20000 लोग पहुँच गए थे। और कई लोगो को खुले आसमान के नीचे रात बितानी पड़ी। कमोवेश यही हाल बद्रीनाथ का भी रहा।
अमर उजाला की माने तो केदारनाथ के कपाट खुलने के चार दिनों मे ही 5 तीर्थ यात्रियों की मृत्यु हो चुकी है। जिसमे से 4 को हृदयघात और एक की खाई मे गिरने से मौत हुई है। ऐसे ही यमनोत्री मंदिर के कपात खुलने के बाद से आज तक 13 तीर्थयात्रियों की मौत हो चुकी है, जिसका एक बड़ा कारण हृदयघात भी है। दैनिक भास्कर के अनुसार 20 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो चुकी है। आंकडे भले ही अलग-अलग है, परंतु मृत्यु हुई है, ये सच है। ऐसे मे प्रश्न उठता है कि जो स्वस्थ्य जांच बेस कैंपों पर हो रही वो कितनी कारगर है?
एक अस्पताल मे जहां सारी सुविधाए होती हैं वहाँ भी प्रतिदिन ओपीडी मे 100 से 150 लोग देखे जाते हैं अगर इसे दुगना भी कर दिया जाय तो भी यह संख्या 1000 तक नही पहुँच पाती है। तो फिर मंदिर जाने वाले इतने यात्रियों कि स्वास्थ्य जांच कितने डॉक्टर्स और कितने घंटे कर रहे हैं? या फिर यहाँ भी कोरोना जांच जैसा कोई फर्जी गिरोह तो सक्रिय नहीं है ?
मैदानी क्षेत्र से पहाड़ में आने के लिए यात्री अपनी स्वास्थ्य जांच कराएं और अपने साथ जरूरी दवा जरूर रखें। केदारनाथ क्षेत्र में ऑक्सीजन 55 से 57 फीसदी है, जिसमें कई लोगों को सांस लेने में दिक्कत होना आम है। ऐसे में जरूरी है कि पहले से एतिहात बरतें। डॉ. राजीव गैरोला, वरिष्ठ चिकित्सक, जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग।
चारधाम यात्रा उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान के साथ साथ आर्थिक सबलता का माध्यम भी है इसलिए ये सरकार ओर नागरिकों की ज़िम्मेदारी है कि गाइडलाइंस का पूरी तरह से पालन हो और तीर्थों तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले अनावश्यक बोझ के साथ-साथ अनहोनी होने से भी रोका जा सके।
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