जो कलमा न पढ़ सका, उसे मार दिया गया” – पहलगाम हमले से बाल-बाल बचे नक्श की रूह कंपा देने वाली आपबीती

photo ani

 

 



एएनआई:  जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले की त्रासदी अब पीड़ितों के ज़रिए सामने आ रही है। हमले में अपने पिता को खो चुके गुजरात के नक्श कलथिया ने समाचार एजेंसी एएनआई को दिए बयान में जो बातें साझा की हैं, वह दिल दहला देने वाली हैं।

https://x.com/ANI/status/1915319557566120364

“कलमा पढ़ो या मरने को तैयार रहो”

नक्श ने बताया कि बैसरन घाटी के ‘मिनी स्विटजरलैंड’ पॉइंट पर जैसे ही गोलियों की आवाज़ गूंजी, वे समझ गए कि आतंकवादी आ चुके हैं। नक्श ने कहा,

“आतंकियों ने सभी लोगों को मुस्लिम और हिंदू में बांट दिया। हिंदू पुरुषों को तीन बार ‘कलमा’ पढ़ने को कहा गया। जो नहीं पढ़ पाए, उन्हें गोली मार दी गई।”

अपने पिता को खोने का दर्द नक्श की जुबानी

नक्श ने बताया कि उसके पिता शैलेश कलथिया आतंकियों से कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं मिला।

“आतंकी बार-बार चुप करा रहे थे। महिलाओं और बच्चों को कुछ नहीं कहा, लेकिन पुरुषों को चुनकर मारा गया।”

हमले के बाद भी सेना देर से पहुंची

नक्श के मुताबिक, जब आतंकी चले गए, तब स्थानीय लोगों ने आकर उन्हें घाटी से नीचे उतरने को कहा।

“हम नीचे उतरे और करीब एक घंटे बाद सेना पहुंची।”

आतंकियों का विवरण:

एक आतंकवादी गोरी त्वचा वाला था, दाढ़ी रखी थी और सिर पर कैमरा बंधा हुआ था — शायद वारदात को रिकॉर्ड करने के लिए। नक्श की यह गवाही इस हमले की नृशंसता और योजनाबद्ध तरीके को उजागर करती है।पहलगाम की यह त्रासदी सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं, धार्मिक पहचान के आधार पर किया गया क्रूर नरसंहार है। नक्श की कहानी बताती है कि आतंकवाद अब सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि धर्म की आड़ में मानवता की हत्या बन चुका है।

 

(Visited 406 times, 406 visits today)