SC की सख्त टिप्पणी: हर सहमति आधारित रिश्ता दुष्कर्म नहीं, विवाह का झांसा बताकर आपराधिक केस दर्ज करना गलत प्रवृत्ति

 

 

 

नई दिल्ली, पीटीआई: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि हर ऐसा रिश्ता जो आपसी सहमति से बना हो और जिसमें विवाह की संभावना हो, उसे विवाद की स्थिति में शादी का झांसा बताकर दुष्कर्म का मामला नहीं बनाया जा सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि रिश्तों में खटास आने पर आपराधिक मुकदमे दायर करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो चिंताजनक है।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने उस समय की जब उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट के एक आदेश को खारिज किया। हाई कोर्ट ने 2015 में दर्ज दुष्कर्म के एक मामले में एक पूर्व न्यायिक अधिकारी को राहत देने से इनकार कर दिया था।

क्या है मामला?

यह मामला एक पूर्व न्यायिक अधिकारी से जुड़ा है जो कलकत्ता के सिटी सिविल कोर्ट में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। एफआईआर में एक महिला ने आरोप लगाया कि वह अपने पहले पति से वैवाहिक विवाद के चलते जब केस लड़ रही थी, तब इस अधिकारी से संपर्क में आई। उस दौरान अधिकारी भी अपनी पत्नी से अलग रह रहे थे।

महिला का आरोप था कि अधिकारी ने उससे विवाह का आश्वासन दिया और कहा कि वह न केवल शादी करेंगे, बल्कि उसके पहले विवाह से हुए बच्चे की जिम्मेदारी भी उठाएंगे। लेकिन जब महिला को तलाक मिल गया तो अधिकारी ने उससे दूरी बना ली और संपर्क बंद कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी:

पीठ ने कहा कि यदि एफआईआर और आरोपपत्र में लगाए गए आरोपों को सही मान भी लिया जाए, तब भी यह मानना कठिन है कि महिला ने केवल विवाह के आश्वासन के आधार पर ही शारीरिक संबंध बनाए। न्यायालय ने माना कि यह संबंध आपसी सहमति से बने थे और इसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।

कोर्ट ने “न्याय के हित” में इस आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने का निर्णय लिया। साथ ही, अपील को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट के फरवरी 2024 के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि अपीलकर्ता को जनवरी 2016 में ही हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल चुकी थी।

यह फैसला न केवल रिश्तों में कानूनी व्याख्या को स्पष्ट करता है, बल्कि उन मामलों में भी दिशा देता है जहां सहमति और गलत आरोपों के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।

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