38वें राष्ट्रीय खेल: जहां खेल बने एकता की सेतु, सांस्कृतिक समरसता का एक भव्य उत्सव

 

 

 



TMP: उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में जारी 38वें राष्ट्रीय खेल सिर्फ प्रतिस्पर्धा का मंच नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समरसता का एक भव्य उत्सव बन चुके हैं। 10,000 से अधिक खिलाड़ी, कोच और अधिकारी न केवल अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि भारत की विविधता में छिपी एकता को भी साकार होते देख रहे हैं।

संस्कृतियों का संगम: एक टेबल, अनेक स्वाद

यहां खेलों से बड़ा उत्सव वह है, जो डाइनिंग हॉल और कैंपस में देखने को मिल रहा है। दक्षिण भारत का वड़ा-सांभर, उत्तराखंड का झोली-भात और पंजाब का राजमा एक ही थाली में परोसे जा रहे हैं। महाराष्ट्र, असम और केरल के खिलाड़ी एक साथ बैठकर न सिर्फ स्वाद का आनंद ले रहे हैं, बल्कि अपने राज्यों की विशेषताओं पर चर्चा कर रहे हैं। भोजन के साथ संस्कृति का भी आदान-प्रदान हो रहा है!

मैदान पर प्रतिद्वंद्वी, बाहर पक्के दोस्त!

खेल के दौरान भले ही खिलाड़ी अपने-अपने राज्यों के लिए लड़ते दिखते हों, लेकिन मैदान से बाहर उनके रिश्ते नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। बैडमिंटन कोर्ट के प्रतिद्वंद्वी शाम को फैन पार्क में हंसी-मजाक करते दिखते हैं। सबसे भावुक पल तब आया जब एक वॉलंटियर, जिसकी कुछ खिलाड़ियों से गहरी दोस्ती हो गई थी, उनसे विदाई लेते समय भावुक हो उठा। यह पल बता गया कि खेल सिर्फ प्रतिस्पर्धा नहीं, रिश्तों की नींव भी रखते हैं।

जब झोड़ा और भांगड़ा पर थिरके भारत के कदम

हर शाम फैन पार्क में भारत की संस्कृति के रंग बिखर रहे हैं। उत्तराखंड के पारंपरिक झोड़ा नृत्य पर महाराष्ट्र, बंगाल और केरल के खिलाड़ी झूम उठे, तो भांगड़ा की धुन पर पूरा फैन पार्क पंजाबी जोश में सराबोर हो गया। तमिलनाडु और असम के खिलाड़ी भी ढोल की थाप पर थिरकने से खुद को रोक नहीं पाए। यह खेल नहीं, भारत की विविध संस्कृतियों का उत्सव था!

उत्तराखंड की संस्कृति ने बांधा सबको एक सूत्र में

खिलाड़ी केवल खेलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि स्थानीय बाजारों में पहाड़ी टोपी खरीदते, गंगा आरती में शामिल होते और उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते नजर आ रहे हैं। यह आयोजन उन्हें खेलों से आगे एक नई सांस्कृतिक अनुभूति दे रहा है।

राष्ट्रीय खेलों से राष्ट्रीय एकता का संदेश

38वें राष्ट्रीय खेलों ने यह साबित कर दिया कि खेल सिर्फ जीत-हार तक सीमित नहीं, बल्कि एकता और भाईचारे का एक अनमोल अवसर भी हैं। यह आयोजन पदकों से कहीं अधिक, उन अनमोल रिश्तों और सांस्कृतिक मेलजोल की मिसाल बनकर याद रखा जाएगा। उत्तराखंड की भूमि से खेलों के जरिए जो एकता और समरसता का संदेश निकला है, वह आने वाले वर्षों तक प्रेरणा देता रहेगा! 

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