उत्तराखंड बीजेपी में बगावत का विस्फोट: 139 बागियों पर गिरी गाज, ‘कांग्रेस युक्त पार्टी’ का तंज

 

 

देहरादून: उत्तराखंड निकाय चुनाव में बगावत के सुर बुलंद करने वाले 139 नेताओं पर बीजेपी ने बड़ी कार्रवाई की है। पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में सात जिलों के बागी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। सबसे ज्यादा गाज गढ़वाल मंडल और देहरादून महानगर के बागियों पर गिरी है, जहां 73 नेताओं को निष्कासित किया गया है।

गढ़वाल मंडल बना बागियों का गढ़
गढ़वाल मंडल में बगावत की लहर सबसे ज्यादा देखने को मिली। देहरादून महानगर, ऋषिकेश और श्रीनगर में बागियों की लंबी फेहरिस्त है। देहरादून में 73, ऋषिकेश में 23, और श्रीनगर में 17 नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया गया है। वहीं, उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग जैसे जिलों में भी बागियों पर कार्रवाई की गई।

नाराज बागियों का बीजेपी पर हमला
पार्टी से निष्कासित नेताओं ने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की है। पार्षद पद के प्रत्याशी प्रसाद भट्ट ने कहा, “मैंने 12 साल तक पार्टी की सेवा की, लेकिन जब टिकट की बारी आई, तो मुझे किनारे कर दिया गया। बीजेपी अब ‘कांग्रेस मुक्त’ नहीं, बल्कि ‘कांग्रेस युक्त’ पार्टी बन चुकी है।”

बागियों का अलग मोर्चा
निष्कासित नेताओं ने अब अपना अलग मोर्चा बना लिया है और चुनावी मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी बनकर उतरने का ऐलान कर दिया है। उनका दावा है कि वे अपनी “इज्जत और स्वाभिमान” के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

बीजेपी का सख्त रुख
देहरादून महानगर बीजेपी अध्यक्ष सिद्धार्थ अग्रवाल ने साफ किया कि पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल किसी भी बागी को दोबारा मौका नहीं मिलेगा। निष्कासित नेताओं पर 6 साल तक पार्टी में वापसी का प्रतिबंध रहेगा।

बागियों के खिलाफ आखिरी अल्टीमेटम
बीजेपी ने सभी बागियों को 8 जनवरी तक का वक्त दिया था कि वे पार्टी के प्रत्याशियों का समर्थन करें। लेकिन इस चेतावनी के बावजूद भी कई नेताओं ने निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिसके बाद यह बड़ी कार्रवाई हुई।

बागेश्वर, अल्मोड़ा और रानीखेत में शांति
इन जिलों में पार्टी को बागियों का सामना नहीं करना पड़ा। यहां बीजेपी प्रत्याशियों को ही समर्थन दिया गया, जिससे इन इलाकों में निष्कासन जैसी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

क्या बीजेपी बगावत से उबर पाएगी?
निकाय चुनाव में बगावत से जूझ रही बीजेपी अब सवालों के घेरे में है। क्या सख्त कार्रवाई पार्टी के भीतर अनुशासन ला पाएगी, या बागियों का यह विद्रोह पार्टी के लिए चुनौती बन जाएगा? निकाय चुनाव का परिणाम इस सवाल का जवाब जरूर देगा।

 
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