दिव्यांग और निराश्रित बच्चों की उड़ान: देहरादून के कार्यक्रम में संघर्ष और सफलता की अद्भुत कहानियाँ

 

 

देहरादून: 08 अगस्त, 2024 को संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम ने उन निराश्रित और दिव्यांग बच्चों की प्रेरणादायक कहानियाँ दुनिया के सामने रखीं, जिन्हें समाज और परिवार ने विपरीत परिस्थितियों के कारण अस्वीकार कर दिया था। इस कार्यक्रम का आयोजन महिला कल्याण विभाग द्वारा किया गया था, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में माननीय कैबिनेट मंत्री श्रीमती रेखा आर्या (महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग) ने भाग लिया। उन्होंने बच्चों के संघर्षों को न केवल सराहा, बल्कि उनके साथ संवाद कर उनकी यात्रा से प्रेरणा भी ली।

सम्मान और आत्मनिर्भरता का जश्न
इस आयोजन का उद्देश्य उन बच्चों का सम्मान करना था, जिन्होंने अपने जीवन में तमाम मुश्किलों का सामना कर पुनर्वासित होकर आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए। महिला कल्याण विभाग के निदेशक, श्री प्रशांत आर्य ने जानकारी दी कि इस कार्यक्रम में शामिल अधिकतर बच्चे आज उच्च शिक्षा और विभिन्न व्यावसायिक कोर्स (जैसे बी.टेक, बी.बी.ए, ब्यूटीशियन कोर्स, कंप्यूटर कोर्स, योगा में डिप्लोमा) कर रहे हैं। विभाग की योजनाओं के अंतर्गत अब तक 104 किशोर-किशोरियों का पुनर्वास किया जा चुका है, जो आत्मनिर्भर होकर अपने भविष्य का निर्माण कर रहे हैं।

कविता और प्रीति: हिम्मत और उम्मीद की मिसाल
इस कार्यक्रम में कविता और प्रीति जैसी लड़कियों की प्रेरक कहानियाँ सामने आईं, जिन्होंने समाज द्वारा अस्वीकार किए जाने के बावजूद अपनी मेहनत और हौसले से सफल जीवन की ओर कदम बढ़ाए।

  • कविता, जो शारीरिक रूप से दिव्यांग है, 10 वर्ष की उम्र में बालिका निकेतन, देहरादून में आई थी। परिवार द्वारा छोड़े जाने के बाद, कविता ने संस्थान में अपने जीवन की नई शुरुआत की। आज वह शिशु सदन में केयरटेकर के रूप में सम्मानजनक जीवन बिता रही है।

  • प्रीति, जो मानसिक रूप से आंशिक दिव्यांग है, 12 वर्ष की उम्र में बालिका निकेतन में प्रवेश पाई थी। आज वह बालिका निकेतन में ही केयरटेकर के रूप में जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही है।

दूसरे बच्चों की सफलता की कहानियाँ
कई अन्य निराश्रित और दिव्यांग बच्चों की सफलता की कहानियाँ इस कार्यक्रम में साझा की गईं, जिन्होंने समाज के अस्वीकार के बावजूद अपनी मेहनत से नई ऊँचाइयों को छुआ।

  1. संजना: हरिद्वार से देहरादून के बालिका निकेतन में आई संजना अब स्वास्थ्य विभाग में नर्सिंग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।

  2. रजनी गोस्वामी: अल्मोड़ा की रजनी, जो बालिका निकेतन में रहती थीं, एनीमेशन में प्रशिक्षण प्राप्त कर अब VFX आर्टिस्ट के रूप में “ट्रांसफार्मर” और “छत्रशाल” जैसी हॉलीवुड फ़िल्मों में काम कर चुकी हैं।

  3. मीना सरन: हरिद्वार में पली-बढ़ी मीना ने डेंटल सर्जरी में eMasters की डिग्री हासिल की और अब भारतीय सेना में कैप्टन के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही हैं।

कार्यक्रम में ऐसे कई अन्य बच्चों की भी प्रेरणादायक कहानियाँ साझा की गईं, जिनकी पहचान गोपनीयता के अंतर्गत सुरक्षित रखी गई है। ये सभी बच्चे आज समाज में सम्मान के साथ आत्मनिर्भर जीवन जी रहे हैं।

 
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