पीटीआई: भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा हाल ही में किए गए एक वैज्ञानिक अध्ययन में यह गंभीर चेतावनी दी गई है कि गंगा नदी में पाए जाने वाले विषैले रसायनों का स्तर लुप्तप्राय गंगेटिक डॉल्फिन के स्वास्थ्य एवं दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो रहा है। यह अध्ययन प्रतिष्ठित हेलियन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
रसायनों के संपर्क में हैं जलीय जीव
अध्ययन के अनुसार, गंगेटिक डॉल्फिन अपने आहार — मुख्यतः मछलियों — के माध्यम से खतरनाक अंतःस्त्रावी-विघटनकारी रसायनों (Endocrine Disrupting Chemicals) के संपर्क में आ रही हैं। इन मछलियों में डीईएचपी (Di-2-ethylhexyl phthalate) और डीएनबीपी (Di-n-butyl phthalate) जैसे औद्योगिक प्रदूषक, तथा प्रतिबंधित कीटनाशक डीडीटी और लिंडेन के अवशेष पाए गए हैं, जो पर्यावरणीय कानूनों के कमजोर क्रियान्वयन की ओर संकेत करते हैं।
डॉल्फिन की घटती जनसंख्या चिंता का विषय
अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि 1957 के बाद से गंगा में डॉल्फिन की आबादी में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। राष्ट्रीय जलीय जीव के रूप में नामित होने के बावजूद इनकी संख्या चिंताजनक रूप से घट रही है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विश्व की नदियों में डॉल्फिन की केवल पाँच प्रजातियाँ बची हैं, और सभी संकटग्रस्त श्रेणी में आती हैं।
प्रदूषण के प्रमुख स्रोत
अध्ययन में गंगा के प्रदूषण के लिए अनेक स्रोतों को जिम्मेदार ठहराया गया है, जिनमें शामिल हैं:
-
कृषि में प्रयुक्त कीटनाशक एवं खरपतवार नाशक,
-
वस्त्र उद्योग से निकलने वाला औद्योगिक अपशिष्ट,
-
वाहनों से होने वाला प्रदूषण,
-
असंगठित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, और
-
पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियाँ।
दीर्घकालिक पारिस्थितिक प्रभाव
इन रसायनों का प्रभाव विशेष रूप से इसलिए चिंताजनक है क्योंकि ये डॉल्फिन की हार्मोनल प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे उनके प्रजनन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और ये रसायन दीर्घकाल तक पारिस्थितिकी तंत्र में बने रह सकते हैं।