बीज से बाजार तक” की क्रांति: मोदी सरकार के 11 वर्षों में कृषि बनी आत्मनिर्भर भारत की रीढ़

 

 

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीते ग्यारह वर्षों में भारतीय कृषि क्षेत्र ने चुपचाप लेकिन गहराई से एक मौन क्रांति का अनुभव किया है। जहां पहले किसान केवल अन्नदाता की भूमिका में थे, वहीं अब वे विकसित भारत के निर्माण में सक्रिय भागीदार बन चुके हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने शुरू से ही यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है, तो किसानों को सशक्त करना ही पहला कदम होगा। उन्होंने कृषि को विज्ञान, तकनीक और अनुसंधान से जोड़ते हुए इसे “बीज से बाजार” तक की रणनीति के साथ नई दिशा दी।

आंकड़े इस बदलाव की गवाही देते हैं:

  • कृषि बजट 2013-14 में ₹28,000 करोड़ से बढ़कर 2024-25 में ₹1.37 लाख करोड़ हो गया है।

  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 11 करोड़ किसानों को ₹3.70 लाख करोड़ सीधे उनके खातों में ट्रांसफर किए गए हैं।

  • किसान क्रेडिट कार्ड योजना से किसानों को ₹10 लाख करोड़ का सस्ता ऋण मिला।

  • फसल बीमा योजना से 20 करोड़ किसानों को ₹1.75 लाख करोड़ के दावों का भुगतान हुआ।

  • गेहूं, धान, दलहन और तिलहन पर MSP में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की गई है।

  • PM-कुसुम योजना के तहत लाखों किसानों को सोलर पंप मिले, जिससे खेती और पर्यावरण दोनों को लाभ हुआ।

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड और सिंचाई योजना ने खेती की उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाई।

संबद्ध क्षेत्रों में भी बड़े सुधार:

  • दूध उत्पादन में 63% वृद्धि हुई, जिससे भारत विश्व का सबसे बड़ा डेयरी उत्पादक बना और 8 करोड़ डेयरी किसान लाभान्वित हुए।

  • मछली पालन का उत्पादन लगभग दोगुना हुआ, जिससे तटीय अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिली।

आज का भारतीय किसान सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह आत्मनिर्भर भारत की नींव रख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की कृषि-केंद्रित नीति, तकनीक और भरोसे की त्रिशक्ति ने कृषि क्षेत्र की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल दी है।

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