कालागढ़ डैम विवाद: हाईकोर्ट ने उत्तराखंड और यूपी सरकार को सौंपी जिम्मेदारी, चार महीने में मांगी रिपोर्ट

 

 

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कालागढ़ डैम क्षेत्र में वन एवं सिंचाई विभाग की भूमि पर अवैध रूप से बसे 400 से 500 परिवारों को हटाने के मामले में जनहित याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार को चार माह के भीतर बैठक कर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

कालागढ़ डैम पर विवाद की जड़

कालागढ़ जन कल्याण उत्थान समिति ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा कि 1960 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने कालागढ़ डैम के निर्माण के लिए वन विभाग की हजारों हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया था। इसके तहत शर्त थी कि डैम बनने के बाद बची हुई भूमि वन विभाग को लौटा दी जाएगी। हालांकि, डैम बनने के बाद कुछ भूमि वापस की गई, लेकिन शेष भूमि पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों और अन्य लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया।

अब राज्य सरकार 213 परिवारों को विस्थापित कर रही है, जबकि दशकों से वहां बसे अन्य लोगों को हटाने की कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई जा रही है। सरकार के इस दोहरे रवैये के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

उत्तराखंड और यूपी सरकारों में टकराव

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने तर्क दिया कि कालागढ़ डैम उत्तर प्रदेश की भूमि में स्थित है, इसलिए वहां रहने वाले लोगों के विस्थापन की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार की बनती है।

हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता ने कोर्ट में यह स्पष्ट किया कि इस मामले में यूपी सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है।

हाईकोर्ट का कड़ा रुख, अधिकारियों को सौंपी रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी

मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने दोनों राज्यों के अधिकारियों को चार महीने के भीतर बैठक कर रिपोर्ट तैयार करने और कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया।

साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से सवाल किया कि यदि कालागढ़ डैम का अधिकांश हिस्सा उत्तर प्रदेश में है, तो यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में क्यों नहीं दाखिल की गई?

इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि जिलाधिकारी पौड़ी द्वारा नोटिस जारी किया गया है, इसीलिए यह मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट में लाया गया।

अगली सुनवाई 28 अप्रैल को

हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 28 अप्रैल तय की है, जिसमें दोनों राज्यों की स्थिति पर रिपोर्ट पेश की जाएगी। इस फैसले से सैकड़ों परिवारों के भविष्य पर बड़ा असर पड़ सकता है, जो दशकों से वहां रह रहे हैं।

न्याय की उम्मीद या विस्थापन की चुनौती?

अब सवाल यह है कि क्या दोनों राज्य सरकारें इस विवाद का हल निकाल पाएंगी या फिर सैकड़ों परिवारों को अपना घर छोड़ना पड़ेगा? हाईकोर्ट के अगले फैसले पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

 

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