मौलि संवाद 2024: भवानी देवी और मीर रंजन नेगी की संघर्ष से सफलता तक की प्रेरक कहानियाँ

 

 

 

देहरादून: 38वें राष्ट्रीय खेलों के तहत आयोजित “मौलि संवाद: नेशनल स्पोर्ट्स कॉनक्लेव” के 13वें दिन खेल जगत की दो बड़ी हस्तियों, भवानी देवी और मीर रंजन नेगी, ने अपने संघर्ष और सफलता की अनसुनी कहानियाँ साझा कीं। इस खास आयोजन में खेल के जुनून, समर्पण और मुश्किलों को पार करने के जज्बे की प्रेरक झलक देखने को मिली।

भवानी देवी: जब सपने अडिग हों, तो हर बाधा छोटी लगती है

पहली भारतीय ओलंपिक फेंसर भवानी देवी ने अपने सफर की शुरुआत से लेकर ओलंपिक्स तक की प्रेरणादायक यात्रा साझा की। उन्होंने बताया कि उनकी फेंसिंग यात्रा छठी कक्षा से शुरू हुई, जब स्कूल में उपलब्ध सीमित विकल्पों में से उन्होंने इस खेल को चुना। रोजाना सुबह 5 से 8 और शाम 5 से 7 बजे तक कड़े अभ्यास ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया।

सबसे बड़ी सीख:
2007 में जब उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेला, तब देर से पहुंचने के कारण उन्हें ब्लैक कार्ड मिला और वह प्रतियोगिता से बाहर हो गईं। यह उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा सबक था – अनुशासन और समय का महत्व। इस झटके के बाद उन्होंने खुद से वादा किया कि अब राज्य स्तर पर पदक जीतना ही उनका लक्ष्य होगा, और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

कोविड और ओलंपिक्स का सफर:
ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई करने के दौरान कोविड-19 महामारी का दौर था। उन्हें घर पर ही अभ्यास करना पड़ा। कई लोगों ने कहा कि ओलंपिक्स रद्द हो सकता है, लेकिन भवानी ने विश्वास बनाए रखा। उन्होंने अपनी माँ को अपनी सबसे बड़ी समर्थक बताया और कहा कि अब उनकी नजरें लॉस एंजेलेस 2028 पर हैं।

मीर रंजन नेगी: हार को जीत में बदलने की कहानी

दूसरे सत्र “ड्रिब्लिंग एडवर्सिटीज़ एनरूट टू ग्लोरी” में पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी और कोच मीर रंजन नेगी ने अपनी संघर्षपूर्ण यात्रा साझा की।

1982 एशियाई खेलों की कड़वी यादें:
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए फाइनल में भारत की हार के बाद उन्हें देशद्रोही तक कहा गया। उनके घर पर पथराव हुआ, समाज ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इसी आलोचना को अपनी प्रेरणा बना लिया।

कोचिंग से किया शानदार वापसी:
मीर रंजन नेगी ने भारतीय पुरुष हॉकी टीम को कोचिंग दी और फिर महिला हॉकी टीम को प्रशिक्षित किया, जिसने स्वर्ण पदक जीता। उनकी कहानी इतनी प्रेरणादायक थी कि इस पर बॉलीवुड फिल्म “चक दे इंडिया” बनाई गई।

“चक दे इंडिया” की यादें:
फिल्म के हॉकी दृश्य उनकी देखरेख में फिल्माए गए थे। जब फिल्म रिलीज़ हुई, तो मीडिया ने फिर से उनकी कहानी को उजागर किया और उन्हें असली प्रेरणा माना। अपने दिवंगत बेटे को याद करते हुए उन्होंने कहा:

“साथ छूट जाने से रिश्ते नहीं टूटा करते,
वक्त की धुंध में लम्हें टूटा नहीं करते।
कौन कहता है तेरा सपना टूट गया,
नींद टूटी है, सपना कभी नहीं टूटा करता।”

अभि फाउंडेशन: युवा खिलाड़ियों के लिए नई उम्मीद

आज वे “अभि फाउंडेशन” के जरिए युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर रहे हैं, उन्हें न केवल खेल की तकनीक बल्कि आत्मविश्वास और संघर्ष से जूझने की ताकत भी सिखा रहे हैं।

प्रेरणा से भरी दो कहानियाँ, हर संघर्षरत व्यक्ति के लिए सबक

भवानी देवी और मीर रंजन नेगी की कहानियाँ सिर्फ खिलाड़ियों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए हैं, जो चुनौतियों के बावजूद अपने सपनों के लिए संघर्ष कर रहा है। “मौलि संवाद” के इस सत्र ने खेल के मैदान से लेकर असली जिंदगी तक की चुनौतियों को जीतने का जज्बा दिखाया।

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