एएनआई। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आज (15 अक्टूबर) जयंती है। पीएम मोदी समेत कई बड़े नेताओं ने डॉक्टर कलाम को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा,”अपने विनम्र व्यवहार और विशिष्ट वैज्ञानिक प्रतिभा को लेकर जन-जन के चहेते रहे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जी को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन। राष्ट्र निर्माण में उनके अतुलनीय योगदान को सदैव श्रद्धा पूर्वक स्मरण किया जाएगा।”
कलाम जी का सफर मानव जगत के लिए एक विरासत: अमित शाह
वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें याद करते हुए X पर लिखा,”ज्ञान और विज्ञान के अद्भुत संयोजन से डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी ने देश की सुरक्षा को अभेद्य बनाने में अहम योगदान दिया। संघर्ष से शीर्ष तक का उनका सफर न केवल देश बल्कि सम्पूर्ण मानव जगत के लिए एक विरासत है।”
अमित शाह ने आगे लिखा,” ‘मिसाइल मैन’ डॉ कलाम का जीवन देश के युवाओं को नई सोच व समर्पण के साथ राष्ट्र सेवा की प्रेरणा देता रहेगा। पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी की जयंती पर उन्हें नमन।”
रामेश्वरम के पास धनुषकोडी गांव में हुआ था पूर्व राष्ट्रपति कलाम का जन्म
भारत रत्न अब्दुल कलाम का जन्म जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम के पास धनुषकोडी गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम था। 2002 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। 27 जुलाई 2015 को कलाम का निधन हुआ था।
कलाम की अगुवाई में बनी एसएलवी-3
एक एयरोस्पेस वैज्ञानिक के रूप में कलाम ने भारत के दो प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनों – रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ काम किया। उन्होंने भारत का पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान (SLV) विकसित करने की परियोजना का निर्देशन किया।
कलाम ने डेविल और वैलिएंट परियोजनाओं का भी नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य सफल एसएलवी कार्यक्रम के पीछे की तकनीक का उपयोग करके बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करना था। उनके लीडरशिप में ही भारत ने अपना पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 (SLV-3) बनाया।
अब्दुल कलाम को 1981 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण और फिर 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
शिलांग में ली अंतिम सांसें
कलाम ने 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग
में एक व्याख्यान देते समय अंतिम सांस ली। उनके योगदान को आज भी देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक और तकनीकी विकासों में से कुछ के रूप में याद किया जाता है।
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