“उत्तराखंड निकाय चुनाव: बागियों से बढ़ी सियासी हलचल, बीजेपी ने दिया ‘आखिरी अल्टीमेटम”‘”

photo- etvbharat

 

 

 

देहरादून: उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव से पहले सियासी पारा चढ़ा हुआ है। 23 जनवरी को होने वाले मतदान और 25 जनवरी को परिणाम आने से पहले बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए बागी नेता बड़ी चुनौती बने हुए हैं। पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ मैदान में उतरे बागियों ने चुनावी समीकरणों को उलझा दिया है।

बीजेपी का बागियों को सख्त संदेश: “आज शाम तक फैसला करें”

बीजेपी ने अपने बागी नेताओं को चेतावनी देते हुए 8 जनवरी की शाम तक का समय दिया है। प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी ने स्पष्ट कर दिया है कि जो बागी नेता पार्टी प्रत्याशियों का समर्थन नहीं करेंगे, उनके खिलाफ अगले दिन निष्कासन की कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।

“पार्टी अनुशासन तोड़ने वालों पर कार्रवाई निश्चित है,” कोठारी ने कहा। रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 50-55 बागी नेता पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ मैदान में हैं। इनकी रिपोर्ट सभी जिलों से मंगवाई जा रही है, जिस पर प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के साथ चर्चा के बाद कार्रवाई तय होगी।

कांग्रेस भी परेशान, लेकिन बीजेपी पर ज्यादा असर

बागियों का असर दोनों पार्टियों पर है, लेकिन बीजेपी के लिए यह ज्यादा चिंता का विषय है, क्योंकि पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं के माध्यम से कई बागियों को समझाने की कोशिश की। कुछ ने नॉमिनेशन वापस ले लिया, तो कुछ ने पार्टी प्रत्याशियों का समर्थन किया, लेकिन जो अब भी मैदान में हैं, उन्हें सख्त परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

बीजेपी के संविधान का सख्त अनुशासन

बीजेपी के संविधान के अनुसार, पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में पार्टी छह साल तक के लिए सदस्यता खत्म कर सकती है। कोठारी ने कहा कि पार्टी ने समझाने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन जो नेता अब भी पीछे नहीं हट रहे, उनके खिलाफ कठोर कदम उठाया जाएगा।

निकाय चुनाव की अहमियत और सियासी गणित

उत्तराखंड के 100 निकायों में होने वाले इस चुनाव को लोकसभा 2024 से पहले का महत्वपूर्ण सेमीफाइनल माना जा रहा है। बागियों की मौजूदगी ने दोनों दलों को मुश्किल में डाल दिया है। खासकर बीजेपी के लिए यह एक अहम परीक्षा साबित होगी, क्योंकि पार्टी पर सत्ता में रहते हुए बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव है।

“अब देखना होगा कि सियासी बगावत की यह आग किसका खेल बिगाड़ती है और कौन इस चुनौती को पार करते हुए मतदाताओं का भरोसा जीत पाता है।”

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