दिनांक 8 मई को सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर भगवान बद्रीविशाल के कपाट आम जनमानस के लिए खुल जायेंगे। जिसके उपरांत आगामी 6 महीने तक श्रद्धालु भगवान बद्रिनारायण के दर्शन और पूजा अर्चना कर सकेंगे। बताते चलें कि इस बार सरकार द्वारा मदिर में प्रतिदिन दर्शन करने वाले यात्रियों की संख्या तय की गई है। जिसके अनुसार एक दिन मे केवल 15000 यात्री ही बद्रीनाथ जी के दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा बद्रीनाथ जाने के लिए प्रत्येक यात्री को रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए विसिट करे ।https://badrinath-kedarnath.gov.in/
बद्रीनाथ जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता हैं। मान्यतानुसार एक बार भगवान विष्णु ध्यान के लिए जगह ढूंढते हुए बद्रीनाथ पहुंचे तो यह स्थान उन्हे ध्यान के लिए उपयुक्त लगा । परंतु उस समय भगवान शिव ओर पार्वती इस जगह पर निवास करते थे। अत भगवान विष्णु ने युक्ति लगाई और बालक रूप मे क्रंदन करने लगे । जिसे सुनकर माता पार्वती से रहा न गया ओर वो बालक के पास आई और बालक के रोने का कारण पूछने लगी। जिसपर बालक बने भगवान विष्णु ने इस स्थान को ध्यान के लिये उनसे मांग लिया। माना जाता है कि तभी से वो भगवान बद्रीविशाल यहा पर ध्यान मुद्रा मे विराजमान हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार धर्म के पुत्र नर-नारायण ने बद्रीनाथ कि स्थापना कि थी । कहा जाता है की महाभारतकाल मे पांडवों ने बद्रीनाथ मे ही अपने पितरों का पिंडदान किया और तभी से बद्रीनाथ के ब्रहमकपाल स्थान पर पिंडदान की प्रथा चली आ रही है । जगतगुरु शंकाराचार्य ने सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भारत मे चारों दिशाओ मे जिन मठो की स्थापना की थी बद्रीनाथ उनमे ले एक है। और इसे ज्योतिरमठ के नाम से भी जाना जाता है। बद्रीनाथ के वर्तमान मंदिर की स्थापना भी शंकराचार्य द्वारा कराई गई थी।
कहा जाता है बद्रीनाथ के माणा गाँव ही व्यास गुफा मे महर्षि व्यास ने भगवान गणेश के साथ महाभारत को लिपिबद्ध किया था।