TMP: उत्तराखंड के चंपावत ज़िले में अब खेती केवल परंपरा नहीं, बल्कि तरक्की का जरिया बन रही है। यहां के युवा किसान अब पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर फूलों की खेती को अपना रहे हैं। खासकर लिलियम जैसे महंगे और सजावटी फूल की व्यावसायिक खेती ने उन्हें न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत किया है, बल्कि स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता की ओर भी अग्रसर किया है।
चंपावत जिले में लगभग 9 हेक्टेयर भूमि पर फूलों की खेती हो रही है, जिसमें से करीब साढ़े तीन हेक्टेयर में विशेष रूप से लिलियम की खेती की जा रही है। यह फूल पहले सिर्फ राजमहलों और बड़े आयोजनों की शोभा हुआ करता था, लेकिन अब यह किसानों की आय का मजबूत स्रोत बन गया है।
मुख्य विकास अधिकारी डॉ. जी.एस. खाती बताते हैं कि फूलों की खेती में अपार संभावनाएं देखते हुए, उद्यान विभाग के माध्यम से किसानों को 80 प्रतिशत सब्सिडी पर पॉलीहाउस उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इससे किसानों को मौसम की मार से बचते हुए बेहतर उत्पादन मिल रहा है।
उद्यान अधिकारी मोहित मल्ली के अनुसार जिले में जरबेरा, गेंदा, ट्यूलिप और ग्लाइडोलस की भी खेती की जा रही है, लेकिन लिलियम की बढ़ती मांग ने इसे विशेष महत्व दिलाया है। किसान अब नीदरलैंड से बीज मंगाकर उन्नत खेती कर रहे हैं।
लोहाघाट के रायकोट महर गांव में युवा किसानों का एक समूह हर साल 15,000 लिलियम बंचेस का उत्पादन करता है, जिससे लाखों रुपये की आय हो रही है। किसान चन्द्रशेखर सिंह और आशुतोष सिंह जैसे युवाओं ने पॉलीहाउस और मल्टी-लेयर क्रॉपिंग तकनीक से यह साबित कर दिया है कि आधुनिक खेती में भी सुनहरा भविष्य छिपा है।
लिलियम की एक स्टिक दिल्ली और मुंबई में 60 से 120 रुपये तक बिकती है। इससे न केवल किसानों की आय बढ़ी है, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा हुए हैं।