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वन नेशन, वन इलेक्शन: क्या भारत के चुनावी परिदृश्य में आने वाली है ऐतिहासिक क्रांति?

 

केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को देश की चुनाव प्रणाली में बड़े बदलाव का प्रस्ताव ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को मंजूरी दे दी है। यह पहल लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव को एक साथ कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सूत्रों के अनुसार, इस प्रस्ताव से संबंधित विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है। अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल को 2029 तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे देशभर में एक साथ चुनाव कराए जा सकेंगे।

समर्थन और विरोध की सियासी हलचल

इस ऐतिहासिक प्रस्ताव पर राजनीतिक दलों के बीच मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इसका समर्थन किया है। सपा प्रवक्ता रविदास मेहरोत्रा ने कहा, “हम वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने से देश को राजनीतिक और आर्थिक रूप से फायदा होगा।” वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने भी इसका समर्थन करते हुए इसे देश और जनहित में महत्वपूर्ण कदम बताया।

वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस समेत कई अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। इन दलों का मानना है कि यह कदम संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता के खिलाफ हो सकता है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।

अगर पास हुआ विधेयक, तो 2029 में होगा चुनावी महाकुंभ

अगर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विधेयक शीतकालीन सत्र में पारित हो जाता है, तो 2029 में देशभर में एक साथ लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव आयोजित किए जा सकते हैं। इस हिसाब से उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां 2027 में विधानसभा चुनाव होने थे, वे अब 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ हो सकते हैं।

चुनावी इतिहास में सबसे बड़ा बदलाव?

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लागू होने से देश के चुनावी खर्च में भारी कमी की संभावना है और बार-बार होने वाले चुनावों से होने वाले राजनीतिक गतिरोध को भी रोका जा सकेगा। यह न केवल संसाधनों की बचत करेगा, बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी बढ़ावा देगा। हालांकि, इसका क्रियान्वयन और प्रभाव कितना सफल होगा, यह अभी भविष्य के गर्भ में है।

लोकतंत्र की दिशा में नया कदम या संघीय ढांचे पर सवाल?

इस प्रस्ताव के आने से एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या यह भारतीय संघीय ढांचे के लिए सही कदम है? क्या इससे राज्यों की स्वतंत्रता कम होगी, या देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मजबूत होगी? जहां कुछ दल इसे ऐतिहासिक क्रांति मान रहे हैं, वहीं कुछ इसे लोकतंत्र पर खतरा भी बता रहे हैं।

आने वाले शीतकालीन सत्र में यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का भविष्य क्या होता है और देश की राजनीति में इसका क्या प्रभाव पड़ता है।

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