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उत्तराखंड: श्री हेमकुंड साहिब के पास हेलीपैड निर्माण , भावी पर्यावरणीय संकट को देगा न्यौता


उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले की जोशीमठ तहसील में श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा के पास चल रहे हेलीपैड निर्माण को लेकर पर्यावरण अधिवक्ता काफी चिंतित हैं। यह एक प्रसिद्ध सिख तीर्थस्थल है जहाँ हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। हेमकुंड साहिब 13,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र है। जो सात पर्वत चोटियों और हिमनद झीलों से घिरा है। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल फूलों की घाटी भी इससे कुछ दूरी पर ही है। जहाँ दुर्लभ फूलों की विभिन्न प्रजातियाँ उगती हैं। ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में हेलीपैड परियोजना का निर्माण एक बहुत बड़े पर्यावरणीय संकट को न्यौता दे रहा है।

स्थानीय लोग भी परियोजना से नाखुश


स्थानीय लोग भी इस परियोजना से खुश नहीं हैं। एक ग्रामीण ने बताया कि जो पर्यटक गंतव्य के करीब पहुंचेंगे, वे पैदल चलकर अन्य स्थानों और संस्कृतियों को जानने के लिए आगे नहीं रुकेंगे। बल्कि हवाई मार्ग से वापस चले जायेंगे। उन्होंने शिकायत करते हुए कहा कि स्थानीय लोगों को राजस्व से वंचित किया जाएगा।

हैलीपेड निर्माण पर अधिकारियों के तर्क

संभागीय वन अधिकारी नंदा वल्लभ ने कहा, “किसी भी स्थिति में फंसे तीर्थयात्रियों या स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से निपटने ,बचाव कार्यो के आपातकालीन अभियान चलाने के लिए हेलीपैड का निर्माण किया जा रहा है।”

आखिर नया हेलीपैड क्यो? जबकि गोविंद घाट पर पहले से हेलीपैड है

जिसपर पर्यावरण अधिवक्ता अतुल सती ने कहा कि “श्री हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी (वीओएफ) के लिए पहले से ही गोबिंद घाट पर एक हेलीपैड है, जो मंदिर से महज 16 किमी दूर है। इस हेलीपैड का निर्माण भी आपातकालीन बचाव अभियान चलाने के नाम पर ही किया गया था। लेकिन, पिछले कुछ सालों से, कुछ निजी कंपनियों के हेलीकॉप्टर यहाँ घूमने-फिरने आये तीर्थयात्रियों को फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब तक छोड़ने और वापस लेजाने का काम कर रहे हैं। जो पर्यटन की आवाजाही की तरफ ही इशारा कर रहा है।” उन्होंने कहा कि जब पहले से ही एक हेलीपैड हमारे पास उपलब्ध है, तो पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के बीच यह दूसरा हेलीपैड बनाने की क्या आवश्यकता है।

“क्या पर्यावरण के लिहाज से सोचना जरूरी नहीं”

क्या किसी ने पर्यावरण के लिहाज से नहीं सोचा कि इस अतिरिक्त बुनियादी ढांचे के निर्माण के साथ ही इस क्षेत्र में पर्यटन ,यातायात कितनी तेजी से बढ़ा है। राजस्व अर्जित करने के लिए, कई उड़ानें दैनिक रूप से चलायी जा रही हैं। जिससे बहुत अधिक ध्वनि और वायु प्रदूषण पैदा होता है जो क्षेत्र के जीवों और वनस्पतियों को भारी नुकसान पहुँचा रहा है।

हेलीकॉप्टर से वन्यजीवों पर पड़ते हैं गंभीर प्रभाव

आपको बता दें कि भारतीय वन अधिकारी आकाश वर्मा ने लगभग एक दशक पहले उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा केदारनाथ अभयारण्य में वन्यजीवों पर हेलीकॉप्टरों से होने वाले गंभीर प्रभाव पर एक रिपोर्ट तैयार की गई थी।

क्या कहती है रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार “हैलीकॉप्टरों द्वारा पैदा शोर का स्तर 70 डेसिबल (डीबी) के लगभग पाया गया है। जिसके बाद WII ने वन्यजीव अभ्यारण्यों के ऊपर के क्षेत्रों को साइलेंट ज़ोन के रूप में अधिसूचित करने की सिफारिश की, जहाँ हेलिकॉप्टरों का शोर स्तर 50 DB की सीमा के भीतर रखा जाना चाहिए।

विमानन कंपनियां एनजीटी के नियमों की उड़ा रहे धज्जियां

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी ) ने कंपनियों को 600 मीटर से ऊपर उड़ान भरने और शोर सीमा का पालन करने का निर्देश दिया भी दिया। लेकिन इसके बावजूद ये विमानन कंपनियां अपने ईंधन की बचत के लिए 250 से 350 मीटर नीचे की उड़ान भरकर नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं।


वहीं पर्यावरणीय अधिवक्ता अतुल सती ने कहा कि “पूरा भायंदर गांव 2013 की आपदा में अचानक बह गया था, जो ये दर्शाता है कि यह हिमालयी क्षेत्र पर्यावरण के प्रति कितना संवेदनशील है। इसलिए, इस तरह की पारिस्थितिकी को पर्यटकों की आमद और प्रदूषण के साथ जोड़ना इसे बर्बाद जानबूझ कर बर्बाद करने जैसा है। इसलिए राज्य सरकार को नए हेलीपैड निर्माण को रोकना चाहिए,”।

यहीं खिलता है दुर्लभ “ब्लू पोस्पी फूल”


स्थानीय इको-डेवलपमेंट कमेटी (ईडीसी) के प्रमुख और एक जाने-माने फोटोग्राफर चंदर शेखर ने बताया कि “जिस स्थान पर एक नया हेलीपैड बन रहा है, वह दुर्लभ ब्लू पोस्पी फूल के लिए भी विशिष्ट स्थान है, जो इस ऊंचाई पर बहुत कम समय के लिए खिलता है। यह फूल पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल अपने धार्मिक महत्व के कारण विशेष स्थान रखता है।जो इस क्षेत्र में भी उगता है लेकिन क्षेत्र के प्राचीन वातावरण में निरन्तर हो रहे परिवर्तन के कारण ये फूल मुरझा सकता है। ”

वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियां उगती हैं यहाँ


नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और वीओएफ के दोनों परिदृश्य, (जो एक-दूसरे के करीब हैं) में पश्चिम हिमालयी क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों की उच्च विविधता और घनत्व है, जिसमें वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों की महत्वपूर्ण आबादी के विषय में बताया गया है।

HC ने बफर जोन में शिविर लगाने व जानवरों को चराने पर लगाया है प्रतिबंध

इससे पहले नैनीताल उच्च न्यायालय ने नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के बफर जोन में शिविर स्थल बनाने, जानवरों द्वारा चरने आदि पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही, इस पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र के और अधिक क्षरण को रोकने के लिए इस पार्क के कोर जोन में सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

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