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अब समय आ गया है न्यायिक नियुक्तियों के लिए नए तंत्र का: पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार

 

 

नई दिल्ली (पीटीआई) : पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने न्यायिक नियुक्तियों की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाते हुए इसे बदलने की आवश्यकता जताई है। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए वैकल्पिक तंत्र के पक्ष में जनमत अब मजबूती से आकार ले रहा है और समय आ गया है कि इस दिशा में गंभीर कदम उठाए जाएं।

उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की कि न्यायपालिका से जुड़े विवादों और न्यायाधीशों पर लगे आरोपों से निपटने के लिए एक मजबूत आंतरिक तंत्र तैयार किया जाए, ताकि न्यायपालिका की गरिमा और पारदर्शिता बनी रहे।

न्यायिक सुधार की वकालत

एक विशेष साक्षात्कार में अश्विनी कुमार ने कहा, “2014-15 में एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) के प्रस्ताव का समय सही था, और आज यह और भी ज़्यादा जरूरी हो गया है। न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वैकल्पिक और संतुलित तंत्र को स्थापित करना समय की मांग है।”

गौरतलब है कि अश्विनी कुमार के कानून मंत्री रहते हुए ही संप्रग सरकार ने एनजेएसी विधेयक का मसौदा तैयार किया था, जिसे बाद में राजग सरकार ने संशोधित कर पारित किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में इसे असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।

उन्होंने फैसले की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा, “संसद की सर्वोच्च इच्छा और बहुमत को नजरअंदाज करना न्यायिक निर्णय प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।”

कांग्रेस पार्टी को आत्ममंथन की जरूरत

अहमदाबाद में होने वाले अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र से पूर्व उन्होंने कांग्रेस पार्टी को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि पार्टी को यह विश्लेषण करना चाहिए कि जनता में उसकी स्वीकार्यता क्यों घट रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि “पार्टी नेतृत्व को अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। चुनावी पराजय के बाद कांग्रेस को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके लिए आंतरिक सुधार और आत्मावलोकन आवश्यक है।”

वैचारिक रूप से अस्थिर दलों से गठबंधन पर चेतावनी

अश्विनी कुमार ने वैचारिक रूप से अस्थिर दलों से गठजोड़ के खिलाफ भी पार्टी को आगाह किया और कहा कि ऐसे गठबंधन पार्टी की पहचान और उद्देश्य को कमजोर कर सकते हैं।

पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार का यह बयान न्यायिक प्रणाली में सुधार और राजनीतिक आत्मावलोकन दोनों की दिशा में एक अहम संकेत माना जा रहा है। अब देखना यह होगा कि सरकार और न्यायपालिका इस मुद्दे पर किस तरह की पहल करती हैं।

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