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श्री गुरु राम राय जी महाराज का 338वां महानिर्वाण पर्व श्रद्धापूर्वक सम्पन्न

 

देहरादून: श्री गुरु राम राय जी महाराज का 338वां महानिर्वाण पर्व इस वर्ष भी परंपरागत श्रद्धा और उत्साह के साथ बुधवार को मनाया गया। श्री दरबार साहिब के सज्जादानशीन श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने विशेष पूजा अर्चना कर इस पावन पर्व का शुभारंभ किया। श्री झंडे जी परिसर के निकट तालाब किनारे श्री गुरु राम राय जी महाराज को तर्पण अर्पित किया गया और 17 पुरोहितों द्वारा चावल, दूध, शहद, गंगाजल, घी और शक्कर से पूजन किया गया।

देश-विदेश से आए श्रद्धालु:
देश के विभिन्न कोनों और विदेशों से आए श्रद्धालुओं ने इस महानिर्वाण पर्व में हिस्सा लिया। श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने सभी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया और विशेष लंगर का आयोजन किया गया, जिसमें भक्तों को प्रसाद के रूप में हलवा-पूरी और चूरमा वितरित किया गया। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के डॉक्टरों की टीम भी मेडिकल सहायता के लिए मौके पर मौजूद रही, जिससे श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य सहायता मिल सके।

गुरु का महत्व और आशीर्वाद:
श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने अपने संदेश में कहा कि गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं और गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है। गुरु के ज्ञान और मार्गदर्शन से ही हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। गुरु पर्व गुरु के प्रति सम्मान और समर्पण का पर्व है, जिसमें गुरु की पूजा से शिष्यों को गुरु की दीक्षा का पूरा फल मिलता है। इस अवसर पर उन्होंने देशवासियों की सुख, समृद्धि और शांति के लिए भी प्रार्थना की।

श्री गुरु राम राय जी महाराज की जीवनी:
श्री गुरु राम राय जी महाराज का जन्म 1646 ईस्वी में चैत्र मास की पंचमी को हुआ था और वे 1676 में देहरादून आए थे। देहरादून को अपनी कर्मस्थली बनाकर उन्होंने इस नगर को पावन किया, जिसके कारण इस शहर का नाम देहरादून पड़ा। 4 सितंबर 1687 को वे परमात्मा में लीन हो गए। उनकी आत्मा को अमर मानते हुए संगतें आज भी उनकी समाधि की सेवा करती हैं और महानिर्वाण पर्व को श्रद्धाभाव से मनाती हैं।

श्रद्धालुओं की आस्था:
महानिर्वाण पर्व पर देशभर से आए हजारों श्रद्धालुओं ने श्री दरबार साहिब में श्री झंडे साहिब और श्री गुरु महाराज जी के दर्शन किए। पूरे दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा और भक्तों ने अपने गुरु के प्रति गहरी आस्था प्रकट की। इस पावन अवसर ने सभी श्रद्धालुओं को अपने गुरु के प्रति सम्मान और समर्पण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

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