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सीजफायर की ओट में सियासत! भारत की सर्जिकल प्रतिक्रिया के बाद अमेरिका ने संभाली ‘सरपंची’, पाक की बची-खुची इज़्ज़त बचाने की स्क्रिप्ट तैयार

PHOTO- PATRIKA

 

 

 

नई दिल्ली : 10 मई का दिन भारत-पाकिस्तान संघर्ष के इतिहास में निर्णायक मोड़ बन गया। बीते चार दिनों से एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जारी भीषण गोलाबारी और ड्रोन्स हमलों के बीच कल शाम अचानक सीजफायर का ऐलान कर दिया गया — और उस ऐलान के पीछे अमेरिका की चौंकाने वाली एंट्री ने सभी को हैरान कर दिया।

भारत ने दिखाई दम, पाकिस्तान ने मांगी रहम

भारतीय सेना ने पाकिस्तान की मिसाइल और ड्रोन हमलों का करारा जवाब देते हुए कई एयरबेस और लॉन्चपैड नेस्तनाबूद कर दिए। पाकिस्तान ने ‘फतेह मिसाइल’ से हमला करने की कोशिश की, लेकिन भारत के S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने उसे हवा में ही नष्ट कर दिया।

स्थिति इस कदर बिगड़ चुकी थी कि पाकिस्तान को अंदेशा हो गया कि अब भारत का अगला वार उसकी रीढ़ तोड़ देगा।

अमेरिका की एंट्री: दोस्त या ‘डैमेज कंट्रोल’?

8 मई तक अमेरिका संघर्ष से दूरी बनाए रख रहा था। लेकिन जैसे ही पाकिस्तान को भारत की सैन्य प्रतिक्रिया असहनीय लगी, उसने अमेरिका से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए दोनों देशों को सीजफायर की टेबल पर ला खड़ा किया।

ट्रंप का ट्वीट:

“एक लंबी बातचीत के बाद भारत और पाकिस्तान पूर्ण युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं। सामान्य बुद्धि और महान बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया गया।”

DGMO स्तर पर बनी सहमति

भारत सरकार की ओर से पुष्टि की गई कि पाकिस्तान के आग्रह पर भारत और पाकिस्तान के DGMO — लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई और मेजर जनरल कासिफ अब्दुल्ला के बीच बातचीत के बाद शाम 5 बजे से सीजफायर पर सहमति बनी।

हालांकि यह भी साफ किया गया कि भारत को तीसरे पक्ष की मध्यस्थता पसंद नहीं और इस वार्ता में कोई बाहरी दबाव नहीं था।

पाकिस्तान की रणनीति: हमले करो, फिर अमेरिका की आड़ लो

पाकिस्तान की पुरानी रणनीति एक बार फिर सामने आई — पहले हमले कर के बढ़त लेने की कोशिश, और जब जवाब मिला तो अमेरिका को बीच में खड़ा करके सीजफायर की माँग।

जानकार मानते हैं कि सीजफायर की पटकथा इसीलिए रची गई ताकि पाकिस्तान की ‘बची-खुची इज़्ज़त’ अमेरिका की शील्ड में ढक सके।

इस संघर्ष ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया कि भारत की रक्षा नीति “पहले सहनशीलता, फिर संपूर्ण प्रतिकार” पर आधारित है। और यह भी कि कूटनीतिक मंच पर भारत आत्मनिर्भर है, किसी मध्यस्थता का मोहताज नहीं। अमेरिका की सरपंची से भले ही युद्ध थमा हो, लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि उसकी सीमाएं अब लांघी नहीं, ललकारी जाएंगी।

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