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ममता बनर्जी का नया कानून विवादों में: दुष्कर्म के लिए फांसी की सजा पर उठे सवाल

 

महिला सुरक्षा को लेकर आलोचना का सामना कर रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नया प्रस्ताव विवादों में घिर गया है। ममता सरकार ने मंगलवार को दुष्कर्म के अपराध में फांसी की सजा का प्रावधान करते हुए एक संशोधन कानून पारित किया है, जबकि पूरे देश में लागू भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) पहले से ही जघन्य दुष्कर्म के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान करती है।

विधि विशेषज्ञों और राजनीतिज्ञों ने जताई नाराजगी

विधि विशेषज्ञों का कहना है कि ममता बनर्जी सरकार को नए कानून लाने के बजाय मौजूदा कानून को कड़ाई से लागू करने पर ध्यान देना चाहिए। वरिष्ठ विधिवेत्ता और सुप्रीम कोर्ट की वकील महालक्ष्मी पवनी ने ममता बनर्जी की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि महिलाओं को सुरक्षा देने और अपराध की निष्पक्ष जांच कराने में मुख्यमंत्री विफल रही हैं। उनका कहना है कि यह नया संशोधन महज एक राजनीतिक स्टंट है और जनता को गुमराह करने का प्रयास है, क्योंकि बीएनएस में पहले से ही जघन्य दुष्कर्म के अपराधों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है।

विशेषज्ञ बोले- मौजूदा कानून का सख्ती से हो पालन

विधि विशेषज्ञों का मानना है कि दुष्कर्म के सामान्य मामलों में फांसी की सजा देना न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ होगा और इसे लागू करना कानूनी और नैतिक दोनों दृष्टिकोणों से अनुचित है। पीके मल्होत्रा, पूर्व विधि सचिव, का कहना है कि कानून में पहले से मौजूद प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करना अधिक महत्वपूर्ण है, बजाय इसके कि नए कानून लाकर जनता को भ्रमित किया जाए।

ममता बनर्जी की मंशा पर उठे सवाल: कानून या राजनीति?

ममता बनर्जी पर आरोप है कि उन्होंने यह कानून लाकर राज्य की कमजोर महिला सुरक्षा स्थिति से ध्यान भटकाने का प्रयास किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्यमंत्री और गृह विभाग का दायित्व संभालने वाली ममता बनर्जी खुद न्याय और सुरक्षा की मांग कर रही हैं, जो एक विरोधाभास है।

राज्य सरकार के संशोधन अधिकार पर कानूनी राय

हालांकि, राज्य सरकार को कानून में संशोधन करने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन केंद्रीय कानूनों जैसे भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और पोक्सो अधिनियम में राज्य सरकार के हस्तक्षेप पर विधिवेत्ताओं ने विस्तार से चर्चा की है। पीके मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के संशोधन अधिकारों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, और इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ है।

 

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